उसके पैर
रेल चल रही थी,मै नीचे की बर्थ पर बैठा हुआ था।रात के 11 बज चुके थे।सभी लोग सोने की तैयारी कर रहे थे।कुछ तो सो भी गये थे।मैने भी अपनी चादर निकाल कर बर्थ पर बिछा दी। मैने ऊपर की बर्थ पर देखा ,एक सुन्दर सी ड्रेस में खुबसूरत लड़की बैठी थी।उसकी नजरे मुझ पर थी।वो मुझे घूर रही थी या मुझे गलतफहमी हूई मै नही जानता।मुझे कुछ संकोच हुआ बर्थ पर लेटने मे,सो बर्थ पर ही दोनो पैर मोड़ कर बैठ गया।उस लड़की ने कोई किताब निकाल ली थी,पर जब भी उसको देखता तो उसकी नजर मुझ से टकरा जाती और मै फिर इधर उधर देखने लगता।
ट्रेन किसी छोटे से स्टेशन पर रुकी थी।चाय-चाय की आवाज से कुछ शोर हो गया था।वो किताब बन्द करके बैठी थी,उसकी घुरतीआंखे मुझे चुभ रही थी।मै उठा और मुँह धोने के लिये ट्रेन से उतर गया।
वापिस आया तो देखा वो बर्थ पर लेट गयी थी पर ना जाने क्यो, मेरी नजरे बार-बार ऊपर उस बर्थ पर चली जाती थी।
ट्रेन चल चुकी थी। कुछ वो लोग जो जागे थे,वो फिर से सो गये थे।मै अभी-अभी नींद के आगोश में जा ही रहा था कि मैने देखा एक लम्बा सा हाथ ऊपर से नीचे आया और मेरी पानी की बोतल उठा कर ले गया।
ये लम्बा हाथ उस लड़की के पास से आया था।उस लड़की ने पानी पिया और बोतल फिर वही रख दी,जहाँ से उसने उठाई थी।
मै पसीने-पसीने हो गया। डर गया था मै। कौन है ये?
कोई आत्मा।मन किया भाग जाऊं यहाँ से,पर मै जड़ सा हो गया था।शरीर वैसे तो कांप रहा था पर हिलने की हिम्मत ना थी।अब तो मेरी नजरे भी नहीं उठ रही थी ऊपर उसकी तरफ।मै ना जाने कब तक उसी हालत में बैठा रहा कि उस लड़की ने अपने पैर बर्थ से लटका दिये।वो लम्बे होते चले गये ।ये देख कर मै बेहोश हो गया। मुझे हॉस्पिटल वालो से पता चला है की मै तीन दिन से हॉस्पिटल में बेहोश हूँ ।
ये लड़की जो ट्रेन मे मुझे मिली थी,के बारे में यदि किसी को बता भी दू तो वो मुझे ही पागल कहेगा।
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