उड़ने वाला भूत
घर के सामने एक ही आम का पेड़ था। उसी पेड़ पर वो मुर्गा बैठा था।पहले तो मैने सोचा कि वो एक बड़ी चिड़िया हैं,पर जब गौर से देखा तो वो एक लाल मुर्गा था।मुझे हैरानी हुई कि ये मुर्गा पेड़ पर कैसे चढ़ गया है?
मौसा जी ने बताया कि यहाँ पर जंगल है इसलिये यहाँ पर उड़ने वाले मुर्गे भी है।उन्होने चेताया कि मै इनको पकड़ने की कोशिश बिल्कुल भी ना करुँ।यहाँ बुरी आत्मा भी है। ये जगह बिल्कुल भी अच्छी नही है।यहां भ्रम ही भ्रम है।मौसा जी तो यहाँ आना ही नही चाहते थे पर विभाग के अधिकारियो के द्वारा दिये गये इस आश्वासन पर वो आ गये कि केवल छ: महिने यदि वो यहाँ रह जायेंगे तो उनको फॉरेस्ट अफसर की पोस्ट पर प्रमोशन कर दिया जायेगा।मै भी अपने मौसा जी के साथ आ गया था।मौसा जी तो आफिस चले जाते पर मै घर के आस पास घूम लेता।शाम को उनके कुछ साथी लोग आ जाते थे उनसे गपशप हो जाती थी।
कल शाम को मौसाजी मिठाई और फल लाये थे।मै मुर्गे को कुछ खाने को देना चाहता था।मैने बाहर आकर देखा वो अभी तक पेड़ पर ही था।मैने उस मुर्गे के लिये पेड़ के नीचे कुछ केले काट कर रख दिये।
कल शाम को मौसाजी मिठाई और फल लाये थे।मै मुर्गे को कुछ खाने को देना चाहता था।मैने बाहर आकर देखा वो अभी तक पेड़ पर ही था।मैने उस मुर्गे के लिये पेड़ के नीचे कुछ केले काट कर रख दिये।
थोड़ी देर में वो पेड़ से उतरा और केले खा कर वही घुमने लगा।
वो मुर्गा सारा दिन वहाँ घूमता रहा।मै उसको पकड़ना चाहता था इसलिये मै उसको विश्वास दिलाने के लिये थोड़ी थोड़ी देर में खाने को कुछ ना कुछ देता रहा।शाम होते ही वो चला गया।अगले दिन भी वो आया,मेरा रखा खाना खाया और चला गया।ये क्रम रोज का हो गया पर वो मुर्गा बड़ा चालाक था।मेरे नजदीक तो आता था पर मेरे हाथ नही आता था।रोज आंख मिचोली का खेल चलता रहा।मेरे मौसा जी ने मुझे बहुत समझाया की मै इस मुर्गे को पकड़ने की कोशिश ना करू पर अब ऐसा लगता था जैसे उसके बिना मेरा दिन अच्छा नही होगा।
वह नियम से रोज आने लगा था।वो सुबह हीआ जाता । सारा दिन वही पेड़ पर बैठा रहता।कभी कभी तो मेरे पीछे चलने लगता।मै जब भी उसके नजदीक आता तो उड़ कर वो फिर पेड़ पर बैठ जाता ।
वह नियम से रोज आने लगा था।वो सुबह हीआ जाता । सारा दिन वही पेड़ पर बैठा रहता।कभी कभी तो मेरे पीछे चलने लगता।मै जब भी उसके नजदीक आता तो उड़ कर वो फिर पेड़ पर बैठ जाता ।
अब दो महिने बीत चुके थे।मौसा जी को किसी ने बताया था कि यहाँ लोग जादू टोना करते है इसलिये तुम लोग किसी का कुछ दिया हुआ ना तो लेना और नही खाना। हमें कोई क्यो टोटका करके कुछ खिलाने लगेगा,कह कर मौसा जी ने हँस कर उनकी बातो को हवा में उड़ा दिया।
मुझे मुर्गे के साथ की आदत हो गयी थी।मै उस मुर्गे के करण ही सुबह जल्दी उठ जता था। दो दिन से मुर्गा नही आया था।मेरा मन बहुत ही दुखी था। मै सोचता कि किसी ने उसे पकड़ लिया होगा।काश मै ही उसे पकड़ लेता।
तीसरे दिन मैने सोच लिया कि बस्ती में जाकर देखता हूँ, शायद मुर्गे के बारे में कुछ पता चल जाये।बस्ती के लिये जाने का रास्ता पगडंडी से था। मै उस पगडंडी पर चलता गया, काफी दूर बस्ती थी ।पहले एक सुखा कुआ आया,फिर एक घर था।मैने घर का दरवाजा खटखटाना चाहा तो अंदर से मीठी सी आवाज आयी-दरवाजा खुला है चले आओ।किसी लड्की की अव्वज़ थी वो।
मैने जोर से कहा-मुझे अंदर नही आना है,मै कुछ पता करने आया हूँ ।
अंदर से आवाज आयी-बोलो,क्या पूछना है?
मै अंसमझ मे था कि इससे कैसे पूछू,एक मुर्गे के बारे में ।
मैने कहा-कृपया बाहर आइये।एक मुर्गे के बारे मे पूछना था।
नहीं,आप अंदर आ जाओ।अंदर से आवाज आयी।
मै डरते हुए उस घर में दाखिल हुआ।दिन में भी वहां अन्धेरा था।एक सुन्दर सी युवती बैठी थी नीचे चटाई पर।
युवती -आओ बैठो,वहाँ कुर्सी रखी है।
मै यंत्रवत सा कुर्सी की ओर बढ़ा और कुर्सी पर बैठ गया।
युवती-मुर्गे को खोज रहे हो?
मैने हाँ में अपनी गरदन हिलायी ।
कुछ खाओगे,पानी पीना हो तो वहाँ से पी लो।उसने अपने हाथ से टेबल पर रखे जग की ओर इशारा किया।
मुझे बहुत ही जोर की प्यास लगी थी।मै उठा और पानी भरा गिलास लेकर वहीं खड़े खड़े एक सांस में पी लिया और आकर फिर वहीं कुर्सी पर बैठ गया।
एक मौन सा पसर गया था, हम दोनो के बीच,शायद पाँच मिनट।
मौन तोड़ते हुए वो युवती बोली-खाना बन रहा है,खाकर ही जाना ।हम लोग मेहमान को बिना खाना खिलाय नही जाने देते।
मैने कहा-ंनहीं,मुझे भूख नही है अभी।वो मुर्गा आपका है क्या?
लड़की हंसी और बोली-वो है पिंजरे में मुर्गा।ले जाओ उसे।मुझे तुम अच्छे लगे।बिन पैसो के ले जाओ।
मैने कहा-इतना अच्छा मुर्गा,मुफ्त में!
उठो और पिंजरा उठाओ।ले जाओ इसे अभी, यदि तुम्हे पसंद हो तो।कुछ तल्ख सी आवाज लगी मुझे।
मै भी यंत्रवत उठा और पिंजरा लेकर जल्दी से तेज कदमो से उसी पगडंडी से चलता हुआ वापिस अपने कमरे में आ गया।
उस मुर्गे को पानी दिया तो उसने नहीं पीया।खाने को दिया तो कुछ भी नही खाया।
रात को उसका पिंजरा अपने कमरे में रखा ताकि कोई बिल्ली आकर उसे नुकसान न पहुँचा सके।
मौसा जी देर से ही आते थे।मै बहुत ही उतावला था उनको आज की सारे दिन की बात बताने के लिये।उनको ये मुर्गा भी दिखाऊँगा। मौसा जी तो खुश हो जायेंगे।जब घर वापिस जायेंगे तो घरवालो को यहाँ की निशानी मुर्गा दिखाऊँगा।दोस्त भी चिढ जायेगे,उसका ये प्यारा सा मुर्गा देख कर।
तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी।शायद मौसा जी आ गये थे।मै दौड़ कर उनके पास गया,पिंजरा हाथ में लेकर।मै उनको हैरान कर देना चाहता था।देखो.. मौसा जी ये रहा मुर्गा।मेरे पिंजरे में।
तो तुमने पकड़ ही लिया इसे?मौसा जी को कोई हैरानी नही हुई।
मैने उनको नही बताया कि ये मुझे मुफ़्त मिला है और ऐसे दर्शाया जैसे मैने ही इसको पकडा है।
मौसा जी मुझे अपने साथ यहाँ इसलिये लाये थे कि मै अपने अवारा दोस्तो से दूर अपनी 12th कक्षा की अच्छी से तैयारी करके अच्छे नम्बर से पास हो कर सभी को आश्चर्य मे डाल दू।
मौसा जी ने पुछा "पढाई भी कर रहे हो या फिर इसी के साथ सारा दिन बर्बाद कर रहे हो?"
जी,पढ़ भी रहा हूँ ।मैने धीरे से कहा
रात हो गयी है,खाना खा कर सो जाओ।सुबह जल्दी उठ कर पढ़ना।कह कर वो अपने बिस्तर पर लेट गये।
मै भी अपने कमरे में पिंजरे सहित आ गया।पिंजरे को मेज पर रख कर लाईट बुझा कर सो गया।रात को मेरी आंख खुली तो टार्च जला कर मै उस पिंजरे के पास ये देखने के लिये चला गया कि मुर्गा सो रहा है या अभी तक जाग रहा है।
अरे!ये क्या?पिंजरा तो खाली है।
जल्दी से लाईट जलाई ।पिंजरा तो बंद है।कहाँ गया वो मुर्गा?मैने पिंजरे को अच्छी तरह से चैक किया कि वो इससे बाहर निकल सकता है या नही।पिंजरा कही से भी टूटा हुआ नही था और ना ही उसमें से इतना बढ़ा मुर्गा निकल सकता था।
पूरे कमरे में मैने उस मुर्गे को खोजा पर वो नही मिला।
मै अब सुबह होने की इन्तजार में बैठ गया और ऐसे ही बैठे हुए ना जाने मुझे कब नींद आ गयी।
सुबह के 10 बज चुके थे।मौसा जी गुस्से में बोल रहे थे।मैने सुनने की कोशिश की,कह रहे थे कि इस लडके को ना अपनी चिंता है, और ना उस बिचारे उस पक्षी की।
बस पक्षी शब्द सुनते ही मै बिस्तर से उछल कर उठ खड़ा हुआ।मैने जल्दी से पिंजरे की ओर कदम बढाए।
अरे!ये तो पिंजरे में है। रात को तो ये पिन्जरा खाली था।मैने उसका निरिक्षण करना चाहा।सभी कुछ सही लग रहा था।कुछ अनहोनी की आशंका हुई।एक डर सा महसूस हुआ।मै मौसजी के पास पिंजरा ले गया और रात की सारी घटना सुना दी।
मौसजी मुस्कराये,बोले इस पिंजरे में तो कोई ऐसी जगह नही है जो ये बाहर आ जाये।फिर पिंजरे का दरवाजा तो बंद है। जाओ पहले पढ़ लो तब इसके साथ अपना समय बर्बाद करना । कह कर मौसा जी चले गये।
कुछ देर बाद,जब मै पढ़ रहा था तो मेरे एक पैर में दो तीन जगह पर खून निकलना शुरु हो गया।ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने काट लिया हो। मैने घर पर रखी दवाई लगायी पर खून बंद होने का नाम नही ले रहा था।धीरे-धीरे खून बहता रहा और मेरा पैर बेजान सा होने लगा।मैने नौकर को आवाज दी।मेरा पैर देखते ही वो बोला-ये तो उड़ने वाला भूत है।खून पी लिया उसने ।पैर से पीया है ताकि तुम भाग ना सको।
उसकी अटपटी बात सुनकर मै डर गया।मेरा ध्यान तुरंत मुर्गे की तरफ गया।वो तो आंख बद करके बैठा था पर रात की बात याद करके लगा कि शायद ये नौकर सही बोल रहा हो।
मैने अपने नौकर को उस दिन की गाँव जाने की सारी बात बताई और ये भी बताया कि ये मुर्गा रात को पिंजरे से गायब हो गया था,पर सवेरे पिंजरे में था।
मेरा पैर बहुत ही दर्द कर रहा था व इस समय ये पैर ज्यादा खून निकलने के करण बेजान सा हो गया था। नौकर एक आदमी को ले आया था।उसने कुछ मंत्र पढ़े और कुछ बुटी लगा दी।एक घन्टे में ये पैर और तुम ठीक हो जाओगे,कह कर वो चला गया।
मुझे आश्चर्य हुआ। एक घटे से भी कम समय में मेरा पैर बिल्कुल ठीक हो गया ।वहाँ घाव का कोई निशान ना था।मंत्र में इतनी शक्ति! पहली बार देखी।वो नौकर उसे उसके घर तक छोड़ने चला गया था ।मैने एक सेब और एक केला काटा और पिंजरे की ओर बढ़ा,ये सोच कर कि मुर्गा भूखा होगा।ये क्या? वो तो खाली है ।कहाँ गया वो? सोच ही रहा था कि मेरी बाह से खून निकलने लगा। मै खून देख कर भयभीत हो गया था।ये क्या हो रहा है।नौकर अभी भी नही आया था।मैने पिंजरे की तरफ देखा तो मुर्गा वहीं था।मुर्गे की चोंच लाल थी जैसे खून लगा हो।मुझे देख कर वो केला खाने लगा।केले पर उसकी चोंच पर लगा खून का रंग साफ दिख रहा था।मै थर्र-थर्र कापने लगा और उस समय डर की वजह से मै घर से भागना चाहता था। मैने एक बार फिर पिंजरे की और देखा,पर वो मुर्गा वहाँ नही था।पिंजरा खाली था।डर के मारे मैने पिंजरा उठाया और घर से बाहर पिंजरा फैक दिया। मुझे दिखाई दिया कि पिंजरे मे मुर्गा था।मै जोर जोर से चिल्लाने लगा।अब मुर्गा पिंजरे के बाहर था।उसका आकर बड़ा और बड़ा हो रहा था वो अब मेरे से ऊंचा हो गया था।मेरा डर के मारे बुरा हाल था कि तभी वो नौकर आता दिखा।मै उस नौकर को आगे आने के लिये रोकना चाहता था पर मेरी आवाज गले में ही अटकी रह गयी और वो बड़ा मुर्गा एक धुए में बदल गया।ये सब देख कर मै बेहोश हो गया।
जब होश आया तो देखा कि पूजा हो रही थी। साधु जी बता रहे थे कि वो खून पीने वाला और उड़ने वाला भूत था, जिसका वो खून पी लेता था उसकी मौत तो पक्की थी क्योकि लोग घाव का इलाज डाक्टर से ही करवाते है।ये शरीर का अलग अलग जगहों से खून पीते है।ये बच्चा किस्मत वाला है जो बच गया।
मै डरते हुए उस घर में दाखिल हुआ।दिन में भी वहां अन्धेरा था।एक सुन्दर सी युवती बैठी थी नीचे चटाई पर।
युवती -आओ बैठो,वहाँ कुर्सी रखी है।
मै यंत्रवत सा कुर्सी की ओर बढ़ा और कुर्सी पर बैठ गया।
युवती-मुर्गे को खोज रहे हो?
मैने हाँ में अपनी गरदन हिलायी ।
कुछ खाओगे,पानी पीना हो तो वहाँ से पी लो।उसने अपने हाथ से टेबल पर रखे जग की ओर इशारा किया।
मुझे बहुत ही जोर की प्यास लगी थी।मै उठा और पानी भरा गिलास लेकर वहीं खड़े खड़े एक सांस में पी लिया और आकर फिर वहीं कुर्सी पर बैठ गया।
एक मौन सा पसर गया था, हम दोनो के बीच,शायद पाँच मिनट।
मौन तोड़ते हुए वो युवती बोली-खाना बन रहा है,खाकर ही जाना ।हम लोग मेहमान को बिना खाना खिलाय नही जाने देते।
मैने कहा-ंनहीं,मुझे भूख नही है अभी।वो मुर्गा आपका है क्या?
लड़की हंसी और बोली-वो है पिंजरे में मुर्गा।ले जाओ उसे।मुझे तुम अच्छे लगे।बिन पैसो के ले जाओ।
मैने कहा-इतना अच्छा मुर्गा,मुफ्त में!
उठो और पिंजरा उठाओ।ले जाओ इसे अभी, यदि तुम्हे पसंद हो तो।कुछ तल्ख सी आवाज लगी मुझे।
मै भी यंत्रवत उठा और पिंजरा लेकर जल्दी से तेज कदमो से उसी पगडंडी से चलता हुआ वापिस अपने कमरे में आ गया।
उस मुर्गे को पानी दिया तो उसने नहीं पीया।खाने को दिया तो कुछ भी नही खाया।
रात को उसका पिंजरा अपने कमरे में रखा ताकि कोई बिल्ली आकर उसे नुकसान न पहुँचा सके।
मौसा जी देर से ही आते थे।मै बहुत ही उतावला था उनको आज की सारे दिन की बात बताने के लिये।उनको ये मुर्गा भी दिखाऊँगा। मौसा जी तो खुश हो जायेंगे।जब घर वापिस जायेंगे तो घरवालो को यहाँ की निशानी मुर्गा दिखाऊँगा।दोस्त भी चिढ जायेगे,उसका ये प्यारा सा मुर्गा देख कर।
तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी।शायद मौसा जी आ गये थे।मै दौड़ कर उनके पास गया,पिंजरा हाथ में लेकर।मै उनको हैरान कर देना चाहता था।देखो.. मौसा जी ये रहा मुर्गा।मेरे पिंजरे में।
तो तुमने पकड़ ही लिया इसे?मौसा जी को कोई हैरानी नही हुई।
मैने उनको नही बताया कि ये मुझे मुफ़्त मिला है और ऐसे दर्शाया जैसे मैने ही इसको पकडा है।
मौसा जी मुझे अपने साथ यहाँ इसलिये लाये थे कि मै अपने अवारा दोस्तो से दूर अपनी 12th कक्षा की अच्छी से तैयारी करके अच्छे नम्बर से पास हो कर सभी को आश्चर्य मे डाल दू।
मौसा जी ने पुछा "पढाई भी कर रहे हो या फिर इसी के साथ सारा दिन बर्बाद कर रहे हो?"
जी,पढ़ भी रहा हूँ ।मैने धीरे से कहा
रात हो गयी है,खाना खा कर सो जाओ।सुबह जल्दी उठ कर पढ़ना।कह कर वो अपने बिस्तर पर लेट गये।
मै भी अपने कमरे में पिंजरे सहित आ गया।पिंजरे को मेज पर रख कर लाईट बुझा कर सो गया।रात को मेरी आंख खुली तो टार्च जला कर मै उस पिंजरे के पास ये देखने के लिये चला गया कि मुर्गा सो रहा है या अभी तक जाग रहा है।
अरे!ये क्या?पिंजरा तो खाली है।
जल्दी से लाईट जलाई ।पिंजरा तो बंद है।कहाँ गया वो मुर्गा?मैने पिंजरे को अच्छी तरह से चैक किया कि वो इससे बाहर निकल सकता है या नही।पिंजरा कही से भी टूटा हुआ नही था और ना ही उसमें से इतना बढ़ा मुर्गा निकल सकता था।
पूरे कमरे में मैने उस मुर्गे को खोजा पर वो नही मिला।
मै अब सुबह होने की इन्तजार में बैठ गया और ऐसे ही बैठे हुए ना जाने मुझे कब नींद आ गयी।
सुबह के 10 बज चुके थे।मौसा जी गुस्से में बोल रहे थे।मैने सुनने की कोशिश की,कह रहे थे कि इस लडके को ना अपनी चिंता है, और ना उस बिचारे उस पक्षी की।
बस पक्षी शब्द सुनते ही मै बिस्तर से उछल कर उठ खड़ा हुआ।मैने जल्दी से पिंजरे की ओर कदम बढाए।
अरे!ये तो पिंजरे में है। रात को तो ये पिन्जरा खाली था।मैने उसका निरिक्षण करना चाहा।सभी कुछ सही लग रहा था।कुछ अनहोनी की आशंका हुई।एक डर सा महसूस हुआ।मै मौसजी के पास पिंजरा ले गया और रात की सारी घटना सुना दी।
मौसजी मुस्कराये,बोले इस पिंजरे में तो कोई ऐसी जगह नही है जो ये बाहर आ जाये।फिर पिंजरे का दरवाजा तो बंद है। जाओ पहले पढ़ लो तब इसके साथ अपना समय बर्बाद करना । कह कर मौसा जी चले गये।
कुछ देर बाद,जब मै पढ़ रहा था तो मेरे एक पैर में दो तीन जगह पर खून निकलना शुरु हो गया।ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने काट लिया हो। मैने घर पर रखी दवाई लगायी पर खून बंद होने का नाम नही ले रहा था।धीरे-धीरे खून बहता रहा और मेरा पैर बेजान सा होने लगा।मैने नौकर को आवाज दी।मेरा पैर देखते ही वो बोला-ये तो उड़ने वाला भूत है।खून पी लिया उसने ।पैर से पीया है ताकि तुम भाग ना सको।
उसकी अटपटी बात सुनकर मै डर गया।मेरा ध्यान तुरंत मुर्गे की तरफ गया।वो तो आंख बद करके बैठा था पर रात की बात याद करके लगा कि शायद ये नौकर सही बोल रहा हो।
मैने अपने नौकर को उस दिन की गाँव जाने की सारी बात बताई और ये भी बताया कि ये मुर्गा रात को पिंजरे से गायब हो गया था,पर सवेरे पिंजरे में था।
मेरा पैर बहुत ही दर्द कर रहा था व इस समय ये पैर ज्यादा खून निकलने के करण बेजान सा हो गया था। नौकर एक आदमी को ले आया था।उसने कुछ मंत्र पढ़े और कुछ बुटी लगा दी।एक घन्टे में ये पैर और तुम ठीक हो जाओगे,कह कर वो चला गया।
मुझे आश्चर्य हुआ। एक घटे से भी कम समय में मेरा पैर बिल्कुल ठीक हो गया ।वहाँ घाव का कोई निशान ना था।मंत्र में इतनी शक्ति! पहली बार देखी।वो नौकर उसे उसके घर तक छोड़ने चला गया था ।मैने एक सेब और एक केला काटा और पिंजरे की ओर बढ़ा,ये सोच कर कि मुर्गा भूखा होगा।ये क्या? वो तो खाली है ।कहाँ गया वो? सोच ही रहा था कि मेरी बाह से खून निकलने लगा। मै खून देख कर भयभीत हो गया था।ये क्या हो रहा है।नौकर अभी भी नही आया था।मैने पिंजरे की तरफ देखा तो मुर्गा वहीं था।मुर्गे की चोंच लाल थी जैसे खून लगा हो।मुझे देख कर वो केला खाने लगा।केले पर उसकी चोंच पर लगा खून का रंग साफ दिख रहा था।मै थर्र-थर्र कापने लगा और उस समय डर की वजह से मै घर से भागना चाहता था। मैने एक बार फिर पिंजरे की और देखा,पर वो मुर्गा वहाँ नही था।पिंजरा खाली था।डर के मारे मैने पिंजरा उठाया और घर से बाहर पिंजरा फैक दिया। मुझे दिखाई दिया कि पिंजरे मे मुर्गा था।मै जोर जोर से चिल्लाने लगा।अब मुर्गा पिंजरे के बाहर था।उसका आकर बड़ा और बड़ा हो रहा था वो अब मेरे से ऊंचा हो गया था।मेरा डर के मारे बुरा हाल था कि तभी वो नौकर आता दिखा।मै उस नौकर को आगे आने के लिये रोकना चाहता था पर मेरी आवाज गले में ही अटकी रह गयी और वो बड़ा मुर्गा एक धुए में बदल गया।ये सब देख कर मै बेहोश हो गया।
जब होश आया तो देखा कि पूजा हो रही थी। साधु जी बता रहे थे कि वो खून पीने वाला और उड़ने वाला भूत था, जिसका वो खून पी लेता था उसकी मौत तो पक्की थी क्योकि लोग घाव का इलाज डाक्टर से ही करवाते है।ये शरीर का अलग अलग जगहों से खून पीते है।ये बच्चा किस्मत वाला है जो बच गया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें