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मई 7, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फर्टिलाइजेशन और कंसेप्‍शन क्या होता है?

       जब स्‍पर्म एग तक पहुंचकर उसे निषेचित करते हैं, उसे कंसेप्‍शन कहते है।  जब तक एग फर्टिलाइज भ्रूण का रूप ले गर्भाशय की लाइनिंग तक पहुंचता है, तब इंप्‍लांटेशन होता है। परन्तु फर्टिलाइजेशन होने के तुरंत बाद इंप्‍लांटेशन नहीं होता है। कई लोगों को लगता है कि फर्टिलाइजेशन गर्भाशय में होता है जब कि ये फलोपियन टयूब में होता है और ये भूर्ण बाद में  गर्भाशय में चिपक जाता है।ये समय एक दिन से लेकर तीन दिन भी हो सकता है।

उसके पैर

रेल चल रही थी,मै नीचे की बर्थ पर बैठा हुआ था।रात के 11 बज चुके थे।सभी लोग सोने की तैयारी कर रहे थे।कुछ तो सो भी गये थे।मैने भी अपनी चादर निकाल कर बर्थ पर बिछा दी। मैने ऊपर की बर्थ पर देखा ,एक सुन्दर सी ड्रेस में  खुबसूरत लड़की बैठी थी।उसकी नजरे मुझ पर थी।वो मुझे घूर रही थी या मुझे गलतफहमी हूई मै नही जानता।मुझे कुछ संकोच हुआ बर्थ पर लेटने मे,सो बर्थ पर ही दोनो पैर मोड़ कर बैठ गया।उस लड़की ने कोई किताब निकाल ली थी,पर जब भी उसको देखता तो उसकी नजर मुझ से टकरा जाती और मै फिर इधर उधर देखने लगता। ट्रेन किसी छोटे से स्टेशन पर रुकी थी।चाय-चाय की आवाज से कुछ शोर हो गया था।वो किताब बन्द करके बैठी थी,उसकी घुरतीआंखे मुझे चुभ रही थी।मै उठा और मुँह धोने के लिये ट्रेन से उतर गया। वापिस आया तो देखा वो बर्थ पर लेट गयी थी पर ना जाने क्यो, मेरी नजरे बार-बार ऊपर उस बर्थ पर चली जाती थी। ट्रेन चल चुकी थी। कुछ वो लोग जो जागे थे,वो फिर से सो गये थे।मै अभी-अभी नींद के आगोश में जा ही रहा था कि मैने देखा एक लम्बा सा हाथ ऊपर से नीचे आया और मेरी पानी की बोतल उठा कर ले गया। ये लम्बा हाथ उस लड़की के पास से आ...

भालुओ का जंगल

 शौक है घुमना।मै घूमना चाहता हूँ । कोई मुझसे पुछता है कि तुम्हारा घूमने का भी कैसा अजीब शौक है।पर मै क्या करू?कोई भी जगह मुझे अच्छी लगती है।मै कस्बो में,गाँव में,पहाडों मे,जंगल में जब भी घूमने जाता हूँ तो साथ में भुने चने लेकर चलता हूँ ।ऐसे ही जब मै जंगल में घूमने जा रहा था तो पोटली में चने थे।मेरे पास केवल एक डण्डा था जिसकी सहयता से पहाड़ पर चड़ना आसान सा लगता था। चलते चलते मै थक गया था।फुलो की खुशबू आ रही थी,जो मदहोश करने वाली थी।मैने एक पेड़ के नीचे आश्रय लेने के लिये चारो तरफ देखा कि कौन सा पेड़ अच्छा रहेगा जिसके नीचे बैठ कर मै आराम कर लू। चारो ओर पेड़ ही पेड़ थे।जैसे ही मै पेड़ के नीचे बैठने वाला था कि मुझे एक काला सा भालू नजर आया।मै उसे देखते ही सरपट भागा।मुझे नही पता कि मैं  कहाँ  पहुंच गया था।मैने देखा एक और भालू चला आ रहा था,मेरे सामने से।कुछ ना देख मै पेड़ पर चढ़ गया।मेरी सांस धौकनी की तरह चल रही थी।ये तो गनीमत थी कि मै गाँव में पेड़ो पर चढ़ा करता था,इसलिये मुझे आदत थी कि मै किसी भी पेड़  पर चढ़ जाता था। पेड़ पर बैठे हुए मुझे एक घंटा हो गया था।मै नीचे उतरने की सोच ही ...