भारतीय अर्थवयवस्था
भारत के जीने के नियम,जिसके अंतर्गत भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद दोनों में समन्वय स्थापित करना सिखाया जाता है एवं व्यापार में भी आचार-विचार का पालन किया जाता है। भारतीय पद्धति में मानवीय पहलुओं को प्राथमिकता दी जाती है। अतः आज देश में भारतीय जीवन पद्धति को पुनर्स्थापित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। देश के आर्थिक विकास को केवल सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति आय से नहीं आँका जाना चाहिए बल्कि इसके आँकलन में रोज़गार के अवसरों में हो रही वृद्धि एवं नागरिकों में आनंद की मात्रा को भी शामिल किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास हेतु एक शुद्ध भारतीय मॉडल को विकसित किए जाने की आज एक महती आवश्यकता है। इस भारतीय मॉडल के अंतर्गत ग्रामीण इलाक़ों में निवास कर रहे लोगों को स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए। गाँव, जिले, प्रांत एवं देश को इसी क्रम में आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। साथ ही, भारतीय मॉडल में ऊर्जा दक्षता, रोज़गार के नए अवसर, पर्यावरण की अनुकूलता एवं विज्ञान का अधिकतम उपयोग का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इस भारतीय मॉडल में प्रकृति के साथ तालमेल करके आगे बढ़ने की आवश्यकता है। यह मॉडल विकेंद्रीयकरण को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। सृष्टि ने जो नियम बनाए हैं उनका पालन करते हुए ही देश में आर्थिक विकास होना चाहिए।
आर्थिक विकास के इस भारतीय मॉडल में कुटीर उद्योग एवं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को गाँव स्तर पर ही चालू करने की ज़रूरत है। इसके चलते इन गांवों में निवास करने वाले लोगों को ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे एवं गांवों से लोगों के शहरों की ओर पलायन को रोका जा सकेगा। देश में अमूल डेयरी के सफलता की कहानी का भी एक सफल मॉडल के तौर पर यहाँ उदाहरण दिया जा सकता है। अमूल डेयरी आज 27 लाख लोगों को रोज़गार दे रही है। यह शुद्ध रूप से एक भारतीय मॉडल है।
विकास के इस नए भारतीय मॉडल को लागू करने की ज़िम्मेदारी नागरिकों पर अधिक है और अब समय आ गया है कि भारतीय नागरिक अपनी सोच को बदलें एवं विदेशों में निर्मित वस्तुओं के उपयोग के मोह का त्याग कर केवल देश में निर्मित वस्तुओं का उपयोग शुरू करें। हम सभी यह जानते हैं कि चीन में निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं मानी जाती है परंतु फिर भी केवल सस्ती दरों पर उपलब्ध होने के कारण हम इन वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं। अब हमें यह मोह त्यागकर केवल और केवल भारत में ही उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करना होगा। इससे न केवल देशी उद्योग धंधों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि देश के लिए अमूल्य विदेशी मुद्रा भी बचाई जा सकेगी। आज की इस घड़ी में यह त्याग हमें देश के लिए करना ही होगा। भारत सरकार को भी आज की परस्थितियों में इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है कि आवश्यक वस्तुओं के विदेशों से आयात पर प्रतिबंध लगाया जाये। जब इस प्रकार की वस्तुएँ भारत में ही निर्मित की जा सकती हैं तो इनका विदेशों से आयात क्यों किया जाना चाहिए। यहाँ व्यापारी वर्ग एवं उत्पादकों को भी यह ध्यान देना होगा कि आगे आने वाले समय में अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए उन्हें सस्ती दरों पर देश के नागरिकों को उपलब्ध कराएँ एवं विदेश में निर्मित वस्तुओं का व्यापार नहीं करें। ऐसा करने से यदि एक साल व्यापारियों एवं उत्पादकों को कम लाभ का अर्जन करना पड़े तो देश हित में इस त्याग को सभी वर्गों ने करना चाहिए।
यदि देश के नागरिक, व्यापारी, उत्पादक, एवं विभिन्न स्तरों पर सरकार, आदि सभी वर्ग मिलकर कार्य करेंगे तो आर्थिक विकास के भारतीय मॉडल को सफल होने से कोई रोक नहीं सकेगा। बल्कि, पूरा विश्व ही इसे लागू करने की ओर आकर्षित होने लगेगा।
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